शुक्रवार, 4 जून 2010

वही दिली मुद्दा रहा है
जो आज हमसे खफ़ा खफ़ा है
उछाल लहरों का कह रहा है
कि चाँद का रुख खिला खिला है
लिए है जितनी विनम्रता वो
कठोरता उतनी ओढ़ता है
कभी था मरकज़ जो तज़किरों का
उन्ही से वो आज लापता है
रहे न सांप और न लाठी टूटे
यही सियासत की दक्षता है
न हो परेशान तू सुनकर इसको
तेरे सताये की ये सदा है
वो शे'र की दाद पाए 'दरवेश'
नवीन शैली में जो बंधा है

रविवार, 11 अप्रैल 2010

दरवेश 'भारती'
डी-38, निहाल विहार,
नांगलोई, नई दिल्ली-110041
मो - 09268798930, 09416514461
-मेल - ghazalkebahane.darveshbharti@gmail.com

शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

कौन आया क्या बोल गया
कानों में डर घोल गया
वक़्त पे काम की बात न की
मोती भी बेमोल गया
अवसर को पहचान के वो
उलझी गाँठे खोल गया
कथ्य तो है पुरज़ोर, मगर
छन्दों का भूगोल गया
स्थिर को मिली मंज़िल 'दरवेश'
था जो डावांडोल, गया

बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

नमस्कार ।
इस ब्लॉग में आपका स्वागत है - 'दरवेश' भारती