वही दिली मुद्दा रहा है
जो आज हमसे खफ़ा खफ़ा है
उछाल लहरों का कह रहा है
कि चाँद का रुख खिला खिला है
लिए है जितनी विनम्रता वो
कठोरता उतनी ओढ़ता है
कभी था मरकज़ जो तज़किरों का
उन्ही से वो आज लापता है
रहे न सांप और न लाठी टूटे
यही सियासत की दक्षता है
न हो परेशान तू सुनकर इसको
तेरे सताये की ये सदा है
वो शे'र की दाद पाए 'दरवेश'
नवीन शैली में जो बंधा है
न रहे सांप और न लाठी टूटे
जवाब देंहटाएंयही सियासत की दक्षता है ...
बहुत सही कहा ....
वाह ! बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएं"वो शे'र की दाद पाए 'दरवेश'
जवाब देंहटाएंनवीन शैली में जो बंधा है"
वाह
आदरणीय दरवेश भारतीजी
जवाब देंहटाएंप्रणाम !
ब्लॉग कि दुनिया में आपका हार्दिक स्वागत है !
शानदार मत्ला है …
वही दिली मुद्दआ रहा है
जो आज हमसे खफ़ा खफ़ा है
पूरी ग़ज़ल रवां दवां है ।
शस्वरं पर आकर मुझे भी धन्य करें । आप जैसे ग़ज़लगुरू की प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं http://shabdswarrang.blogspot.com
lajawaab, lage rahie
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
उछाल लहरों का कह रहा है
जवाब देंहटाएंकि चाँद का रुख खिला खिला है
भी था मरकज़ जो तज़किरों का
उन्ही से वो आज लापता है
रहे न सांप और न लाठी टूटे
यही सियासत की दक्षता है ...
ज़िंदगी और उसकी ठोस धरातल से जुड़े हुए
ऐसे नायाब अश`आर, सिर्फ और सिर्फ आप सरीखे
मान्यवर गुरुवर की लेखनी से ही निकल सकते हैं
हम पढने वाले तो ढंग से सताइश भी नहीं कर पाते , क्योंकि
ऐसे उम्दा लेखन की तारीफ़ के लिए हमें अलफ़ाज़ की कमी
आड़े आ जाती है .......
बस नमन करता हूँ .
'मुफ़्लिस'
कलाम अच्छा, बहुत नयापन
जवाब देंहटाएंकहाँ हो? कुछ क्या नया लिखा है?